फ़िलंथ्रॉफ़ी के तहत किए जाने वाले हमारे काम का महत्त्वपूर्ण क्षेत्र बच्चों के कल्याण, सुरक्षा और कुशल-क्षेम के लिए समर्पित है

हमारे ग्रांट्स प्रोग्राम के ज़रिए, हम देश के ग्रामीण और शहरी हिस्सों के सबसे संवेदनशील बच्चों के साथ काम करने वाले तकरीबन 100 से ज़्यादा संगठनों की सहायता करते हैं।

असुरक्षित बच्चों का दायरा समाज में बहुत दूर तक फैला हुआ है। इनमें वे बच्चे आते हैं जिनके सिर्फ़ माँ या सिर्फ़ पिता हैं, जो दिहाड़ी मज़दूरी करने वाले घरों से हैं, जो माइग्रंट परिवारों से हैं, जो सड़कों पर रहते हैं, जो अनाथ हैं, जो घर छोड़ कर भाग गए हैं और जिन्हें उनके घर वालों ने ऐसे ही छोड़ दिया है।

वे बच्चे जो कैंसर या एचआईवी जैसी बीमारियों से जूझ रहे हैं, जो झुग्गी-झोंपड़ियों में रह रहे हैं, जो पिछड़े हुए
ग्रामीण इलाकों में रह रहे हैं, ये सभी संवेदनशील बच्चों की श्रेणी के दायरे में आते हैं।

Children

चित्र साभार - पुरुषोत्तम ठाकुर

हम उन संवेदनशील बच्चों पर भी ध्यान देते हैं, जो बाल-तस्करी की चपेट में आ गए हैं, जिन्हें लिंग, जाति/समुदाय-आधारित भेदभाव झेलना पड़ा है, जिन्हें बाल-विवाह और किशोर उम्र में गर्भावस्था के अनुभवों से गुज़रना पड़ा है,जो यौन प्रताड़ना और ऑनलाइन दुर्व्यवहार तथा घरेलू हिंसा से बच कर आए हैं।

जिन बच्चों ने अपराध किया है या, जो बच्चे नशे की लत की जकड़ में हैं, उनकी गिनती भी संवेदनशील बच्चों की श्रेणी में होती है और उन बच्चों पर भी हम ध्यान देते हैं।

संवेदनशील बच्चों के इतने बड़े दायरे से जुड़े कामों को करने के लिए हमारे पास काम करने के कई-कई तरीक़े मौजूद हैं। सबसे पहला कदम तो, इन बच्चों को एक ऑब्ज़र्वेशन होम जैसी बच्चों की देखभाल करने वाली संस्थाओं के ज़रिए, मदद देना है। इससे इन बच्चों तक पोषण, शिक्षा, काउंसिलिंग और स्वास्थ्य रक्षा पहुँचाई जा सकती है।

जिन परिवारों या देखभालकर्ताओं ने बच्चों छोड़ दिया है, वे उन्हें वापस लेने को भी हम बढ़ावा देते हैं। इसके अलावा,हम बाद के समय में देखभाल के लिए कौशल की ट्रेनिंग या उच्च शिक्षा जैसे अवसर भी देते हैं।

हम समुदाय-आधारित प्रयासों को भी आधार प्रदान करते हैं। इसमें स्कूल की छुट्टी होने के बाद सहायता देने वाले केंद्र व समूह, जो बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं उनके लिए पढ़ने और लिखने की सहायता, पोषण व बच्चों के अधिकारों के हनन के बारे में जागरूकता लाना आदि शामिल है। बाल श्रम, तस्करी आदि जैसे जुर्मों के ख़िलाफ़ दर्ज मामलों की संख्या में माता-पिता और सामुदायिक संस्थानों के बीच बाल अधिकारों के प्रति बढ़ती जागरूकता दिखाई देती है।

हम बच्चों को बचाने, उनकी मनोवैज्ञानिक-सामाजिक और चिकित्सा ज़रूरतों के लिए सहायता देने, साथ ही, कानूनी सहायता और मुआवज़े के लिए केसवर्क के रूप में मदद भी करते हैं। इस दिशा में हमारे काम की वजह से पढ़ाई छोड़ने की कगार पर पहुँच हुए बच्चों में पढ़ाई जारी रखने में बढ़ोतरी और बीच स्कूल छोड़ने वाले बच्चों में की आई है।

हम अपने भागीदारों के ज़रिए बच्चों के लिए काम करते हैं।

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