हमारा मकसद समाज को और अधिक न्यायपूर्ण, समतामूलक, मानवीय और टिकाऊ बनाना है। इसी मकसद को पूरा करने के लिए हमने ग्रांट्स देने की शुरुआत की है।
हम कई तरह के गैर-लाभकारी संगठनों की वित्तीय ग्रांट्स के ज़रिए मदद करते हैं। इनमें अपने क्षेत्र में काम की शुरुआत कर रही नई-नई संस्थाओं के साथ, कई वर्षों से काम कर रही संस्थाएँ शामिल हैं। इन संस्थाओं के काम के मुताबिक इन्हें 1 से 10 वर्षों के ग्रांट्स दिए जाते हैं। हमने ज़्यादातर संस्थाओं को 3 से 4 वर्षों के ग्रांट्स दिए है।
हमारे साझीदार संगठन कई क्षेत्रों में काम करते हैं। इनमें से कुछ क्षेत्रों को साथ मिला हम इन्हें “विषय-क्षेत्र” कहते हैं। कमज़ोर और वंचित तबके के लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए हम नए-नए काम के क्षेत्रों और नए-नए साझीदार संगठनों को अपन साथ जोड़ते रहेंगे।
कमज़ोर और वंचित तबके के लोगों में अपंग, हिंसा का सामना कर रही औरतें, युवतियाँ, कई तरह के ख़तरों का सामना कर रहे बच्चे, बेघर व मुहताज बूढ़े लोग, हाथों से मैला उठाने वाले, कचरा बीनने वाले, प्रवासी व अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले मज़दूर, छोटी जोत वाले किसान, छोटे आदिवासी समुदाय, पानी की कमी से जूझते हुए समुदाय शामिल हैं।











चित्र साभार - पुरुषोत्तम ठाकुर
हम नीचे दिए गए नौ क्षेत्रों में अपने भागीदारों के साथ काम करते हैं:
हम ग्रांट्स के ज़रिए ऊपर बताए गए क्षेत्रों में काम करने वाले साथियों की मदद करते हैं। हम हाशिए के समुदायों की सीधे तौर पर मदद करने और सरकारी योजनाओं का लाभ पाने में मदद करने के लिए भागीदारों को साथ लेते हैं। हम देश के विकास में नागरिक समाज संगठनों के योगदान की भी सराहना करते हैं।
हमने कुछ ख़ास योजनाओं को बनाने और उन पर काम करने के लिए कई पार्टनर संगठनों और राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम किया है। उनमें से कुछ योजनाएँ हैं:
- ओडिशा के कुछ ज़िलों में बच्चों के पोषण में सुधार लाने की कोशिश
- आंध्र प्रदेश में छोटी व मध्यम जोत वाले किसानों की उपज और उपज के मूल्य को बेहतर बनाने की कोशिश
- महाराष्ट्र में विचाराधीन कैदियों के लिए न्याय प्रक्रिया को आसान बनाना
- झारखण्ड में पंचायत के काम-काज को प्रभावी बनाना
- बेंगलूरु की बस्तियों में कल्याणकारी अधिकारों और बुनियादी सेवाओं तक पहुँच
हम अपने पार्टनर्स के साथ जुड़कर काम करने वाले जुझारू और अनुभवी लोगों की टीम्स बना रहे हैं। यह टीम्स हमारी संस्थानिक मौजूदगी वाले क्षेत्रों में काम करने के लिए बनाई जा रही हैं। इन क्षेत्रों में आंध्र प्रदेश, बिहार, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पश्चिमोत्तर भारत, ओडिशा और तेलंगाना शामिल हैं।

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