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कोविड-19 प्रतिक्रिया

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इस संकट के कई थपेड़ों ने सबसे ग़रीब और सबसे हाशिए पर रहने वाले लोगों को सबसे ज़्यादा रूप से नुकसान पहुँचाया।
महामारी से निपटने के लिए सिविल सोसायटी की मदद करने के लिए अज़ीम प्रेमजी फ़ाउण्डेशन और WIPRO ने साथ मिल कर प्रयास किए।
महामारी से निपटने के लिए हमारे द्वारा की जा रही कोशिशों में एक-दूसरे से जुड़े हुए दो पहलू थे – पहला, स्वास्थ्य देखभाल और दूसरा मानवतावादी नज़रिया।
हमारी इन कोशिशों को हमारे संगठन के सदस्यों, भागीदारों, साथी सरकारी स्कूल के शिक्षकों और अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के पूर्व-विद्यार्थियों ने आगे बढ़ाया था।
इस नेटवर्क व WIPRO की तकनीकी विशेषज्ञता और कारगर वितरण की मदद से हमें अलग-अलग राज्यों में 83 लाख से अधिक लोगों को उनकी आजीविका फिर से शुरू करने में मदद कर पाए। इसके अलावा, हम लोगों तक भोजन, सूखा राशन और व्यक्तिगत स्वच्छता किट की सहायता भी पहुँचा पाए।
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महामारी के समय, हमारा एकीकृत स्वास्थ्य प्रतिक्रिया ने महामारी से लड़ने की सबसे आगे की पंक्ति में होने वाले काम को मज़बूत बनाया गया था। इसमें, जाँच की क्षमता को बढ़ाना और कुछ चुनी हुई जगहों पर इलाज की सुविधाओं को बढ़ाना भी शामिल था। हमने पुणे में विप्रो के एक कैंपस को 450 बिस्तरों वाला कोविड-19 का देखभाल अस्पताल बनाया था।
ये कहानियाँ कोविड-19 महामारी से लड़ने के लिए पूरे फ़ाउण्डेशन, यानी फ़ील्ड में, फ़िलंथ्रॉफ़ी के तहत और
विश्वविद्यालय व हमारे सारे साझेदारों द्वारा किए गए काम को कम शब्दों में बताती हैं।
यह कोविड-19 के दौरान लोगों फ़ील्ड में जो देखा, सुना और महसूस किया, उसका वृतांत है। कलबुर्गी से शुरू होने वाली सीरीज़ के लिए यहाँ क्लिक करें Click here
JIDHAN पर हमारे फ़ील्ड नोट्स पढ़ें – यह संस्थान झारखंड में समुदाय-केंद्रित स्वास्थ्य सेवा की व्यवस्था करता है। साथ ही किसी महानगर में कोविड-19 उपचार सुविधाओं को बढ़ाने और कोविड से निपटने के बारे में बताने वाली हमारी कोशिशों के बारे में पढ़िए। साथ ही कोविड-19 की परीक्षण क्षमता बढ़ाने और पहली पंक्ति में काम करने वाले स्कूल शिक्षकों के बारे में जानिए। इसके साथ ही झारखंड के चाचाली गांव में समुदाय की पहल ने किस तरह कोविड-19 से निपटा गया, और अन्य क्षेत्रों में कोविड स्वास्थ्य देखभाल की पहल के बारे में जानिए।
द डिस्पैच (The Dispatch) भी देखें और मिशन मकुंदा (Mission Mukunda) के बारे में भी पढ़ें – जहाँ असम के दूर-दराज़ में बने एक अस्पताल का पूरा-का-पूरा रूप बदल दिया गया था। पुराने अंकों को यहाँ देखें – 5 (English), 5 (Kannada), 4, 3, 2 और 1
यहाँ कोविड-19 के दौरान बेंगलूरु में उपलब्ध कराई गई सेवाओं की कहानियों को फोटो के ज़रिए पेश किया जा रहा है। पहले में एकीकृत स्वास्थ्य व्यवस्था और मानवीय सहायता, और दूसरे में अनेकल तहसील में दी गई मानवीय सहायता और टीकाकरण के प्रयासों की कहानियाँ हैं।
समुदाय, पंचायत और ज़िला स्तर पर स्कूलों को फिर से खोलने, स्वास्थ्य देखभाल और मानवीय सहायता के लिए हैंडबुक और चेकलिस्ट।
जागरूकता संबंधी जानकारी, हिन्दी और कन्नड़ में
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COVID-19 संबंधित तालाबंदी के दौरान, शहरी क्षेत्रों में 80 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों में 57 प्रतिशत श्रमिकों ने अपना रोज़गार खो दिया था। मध्य भारत के कई हिस्सों में भोजन और पानी की कमी हो गई थी। अपने मूल गाँवों को वापस लौटने वाले में से सिर्फ़ 20-50 प्रतिशत के पास ही किसी-न-किसी तरह की आमदनी का ज़रिया बचा था। ऐसे में, हम फिर से ग्रामीण समुदायों को अपने पैरों पर खड़ा कर सकते हैं और शहरों को नया रूप कैसे दे सकते हैं? इस बारे में और अधिक पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी सोशल एंटरप्राइज सेल द्वारा चलाए जा रहे सोशल एंटरप्राइज आइडिया चैलेंज में से एक, 'कोविड 19 संकट की प्रतिक्रिया' पर था। जीतने वालों को बधाई!