स्वास्थ्य

Health

हमारा मानना है कि हर व्यक्ति और हर परिवार को

हम समुदाय में स्वास्थ्य से जुड़ी पैक्टिसेस को और बेहतर बनाना चाहते हैं। इसके अलावा, कमज़ोर परिवारों के लिए स्वास्थ्य की गुणवत्तापूर्ण सेवा मुहैया कराने में भी मदद करते हैं। इसके लिए हमने काफ़ी खुला, बड़ा और सबके साथ मिलकर काम करने का नज़रिया अपनाया है।

स्वास्थ्य सार्वजनिक हित का मामला है। हमारा मानना है कि हमारे देश के हर एक कोने तक स्वास्थ्य सेवाएँ पहुँचाने के लिए एक मज़बूत सार्वजनिक सिस्टम बहुत ज़रूरी है। हमारा मुख्य काम, सार्वजनिक सिस्टम की क्षमता और उनके काम करने के तरीके को बेहतर बनाते हुए, उन्हें सामुदायिक स्वास्थ्य, प्राथमिक चिकित्सा, माध्यमिक अस्पताल जैसे हर एक स्तर पर आधार देना है।

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ग्रामीण

छवि क्रेडिट-पुरुषोत्तम ठाकुर

ग्रामीण शिशुघर पहल

पैदा होने के 1,000 दिनों तक के पोषण का बच्चे के स्वास्थ्य और सारी ज़िंदगी भर तक की ताकत व क्षमता पर असर होता है। ज़रूरत के मुताबिक पोषण न मिलने दिमागी विकास धीमा हो जाता है और सारे शरीर का विकास रुक जाता है।

भारत के ग्रामीण और दूर-दराज़ के इलाकों में सात महीनों से लेकर तीन साल के बच्चे सबसे आसानी से कुपोषण का शिकार हो सकते हैं। हालाँकि ये बच्चे Take Home Ration (THR), टीकाकरण और अन्य स्वास्थ्य सेवाओं के हक़दार हैं, लेकिन कई वजहों से यह सेवाएँ उन तक पहुँच नहीं पाती हैं। उसकी एक वजह बच्चों के माता-पिता या देखभाल करने वालों को कई बार टीकाकरण जैसी सेवाओं के बारे में जानकारी ही नहीं होती है। इसके साथ ही दूर-दराज़ के गाँवों तक यह सेवाएँ पहुँच नहीं पाती है या वहाँ के लोग इन सेवाओं तक पहुँच नहीं पाते हैं।

RuralCrecheInitiative
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चित्र साभार - पुरुषोत्तम ठाकुर

इसके अलावा इन बच्चों के माता-पिता उन्हें उनके बड़े भाई-बहनों या घर के बुज़ुर्गों के पास छोड़कर काम पर चले जाते हैं। इसका गहरा असर इन बच्चों के पोषण और शारीरिक व मानसिक विकास पर होता है।

यह शिशु घर समुदाय को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं। इन शिशु घरों को एनजीओ चलाते हैं। इन शिशु घरों में माएँ अपने छोटे बच्चों को छोड़कर अपने काम पर जाती हैं।

ग्रामीण शिशु घर पहल के तहत हम छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा के आदिवासी बहुल इलाकों में नागरिक समाज संगठनों की भागीदारी मे शिशु घर चलाते हैं। अब तक हम 300 से ज़्यादा शिशु घरों की शुरुआत कर चुके हैं। अगले 10 सालों में इन राज्यों में 7,000 से 8,000 शिशु घरों की स्थापना का करने का हमारा मकसद है।

हमारी इस पहल को झारखंड और ओड़िशा में ‘शिशु घर’ और छत्तीसगढ़ में ‘लइका घर’ कहा जाता है। यह शिशु घर समुदाय के साथ मिलकर चलाए जाते हैं। यह शिशु घर 6 महीनों से लेकर 3 साल तक के बच्चों की दिन में सात से आठ घटों तक देखभाल करते हैं। शिश घरों में यह सुविधा हफ़्ते के 6 दिन मुहैया कराई जाती है।

इन शिशु घरों का कामकाज देखने के लिए शिशु घर कार्यकर्ता होते हैं। वे बच्चों को दिन में एक बार गरमा-गरम खाना और दो बार स्नैक्स देते हैं। वे तय समय पर बच्चों की ऊँचाई/लंबाई और वज़न नापते रहते हैं। इसके आधार पर वे कुपोषित बच्चों को मेडिकल सपोर्ट के लिए न्यूट्रिशन रिसोर्स सेंटर भेजते हैं।

शहरी

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Research

ग्रांट्स / अनुसंधान / शिक्षा

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