हमारा मानना है कि हर व्यक्ति और हर परिवार को
हम समुदाय में स्वास्थ्य से जुड़ी पैक्टिसेस को और बेहतर बनाना चाहते हैं। इसके अलावा, कमज़ोर परिवारों के लिए स्वास्थ्य की गुणवत्तापूर्ण सेवा मुहैया कराने में भी मदद करते हैं। इसके लिए हमने काफ़ी खुला, बड़ा और सबके साथ मिलकर काम करने का नज़रिया अपनाया है।
स्वास्थ्य सार्वजनिक हित का मामला है। हमारा मानना है कि हमारे देश के हर एक कोने तक स्वास्थ्य सेवाएँ पहुँचाने के लिए एक मज़बूत सार्वजनिक सिस्टम बहुत ज़रूरी है। हमारा मुख्य काम, सार्वजनिक सिस्टम की क्षमता और उनके काम करने के तरीके को बेहतर बनाते हुए, उन्हें सामुदायिक स्वास्थ्य, प्राथमिक चिकित्सा, माध्यमिक अस्पताल जैसे हर एक स्तर पर आधार देना है।

छत्तीसगढ़-झारखंड के सेन्ट्रल आदिवासी बेल्ट में हम स्वास्थ्य सेवाओं में सबसे आगे काम करने वालों के साथ सबसे अंतिम चरण की स्वास्थ्य सेवाओं के बेहतर बनाने के काम करते हैं। बेंगलूरु में हम बच्ची बस्तियों में स्वास्थ्य केंद्र चलाते हैं।
ज़मीनी स्तर पर काम करने के अलावा, हम शिक्षा के ज़रिए स्वास्थ्य क्षेत्र में समर्पित होकर काम करने वाले कुशल और जानकार लोगों का समूह तैयार करने के लिए भी मदद करते हैं। हमने अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय भोपाल में पब्लिक हेल्थ में स्नातकोत्तर कोर्स भी शुरू किया है। इस कोर्स में हम ज़मीनी स्तर का अध्ययन करते हैं,जो हमारे द्वारा दिए जाने वाला शोध अनुदान, ज़मीनी स्तर के व्यवहारिक मुद्दों पर ही ध्यान देता है।
हमारे काम करने के लिए आपसी सहयोग बहुत ज़रूरी है। इसलिए, हम दूर-दराज़ के इलाकों में काम करने वाले स्वास्थ्य संस्थानों के साथ भागीदारी करते हैं। ऐसे संस्थानों की हम अनुदान देकर भी मदद करते हैं।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में हमारे काम को मोटे तौर पर इन श्रेणियों में बांटा जा सकता है : ग्रामीण, शहरी/ माइग्रेटेड और अनुदान / शोध/ शिक्षा
स्वास्थ्य के क्षेत्र में हम अपने फ़ील्ड संस्थानों और भागीदारों ज़रिए ख़ुद ज़मीनी स्तर पर काम करते हैं।
ग्रामीण
वर्ष 2023 में फ़ाउण्डेशन ने छत्तीसगढ़ और झारखंड की सीमाओं के आसपास के 10 ज़िलों के एक समूह में काम करना शुरू किया। जन स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाले पेशेवरों की एक टीम ने अपनी देखरेख में स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) और स्वास्थ्य उप केंद्रों की मदद करने से शुरूआत की। ये लोग स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और स्वास्थ्य उप केंद्रों को उनके दायरे में आने वाले गांवों में व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएँ देने में मदद करते थे। पेशेवरों की यह टीम, स्वास्थ्य केंद्रों द्वारा गाँव स्वास्थ्य, स्वच्छता और पोषण दिवस मनाने में उनकी मदद करती थी। यह मदद स्वास्थ्य केंद्रों के स्टाफ़ की क्षमता बढ़ाने और पीएचसी और उप केंद्रों की सेवाओं को बेहतर बनाने के रूप-में होती थी। इसके साथ-साथ, यह टीम उन तरीकों को बेहतर बनाने में भी मदद करती थी, जिन तरीकों से लोगों को स्वास्थ्य केंद्रों या उप केंद्रों तक भेजा जाता था।


छवि क्रेडिट-पुरुषोत्तम ठाकुर
पैदा होने के 1,000 दिनों तक के पोषण का बच्चे के स्वास्थ्य और सारी ज़िंदगी भर तक की ताकत व क्षमता पर असर होता है। ज़रूरत के मुताबिक पोषण न मिलने दिमागी विकास धीमा हो जाता है और सारे शरीर का विकास रुक जाता है।
भारत के ग्रामीण और दूर-दराज़ के इलाकों में सात महीनों से लेकर तीन साल के बच्चे सबसे आसानी से कुपोषण का शिकार हो सकते हैं। हालाँकि ये बच्चे Take Home Ration (THR), टीकाकरण और अन्य स्वास्थ्य सेवाओं के हक़दार हैं, लेकिन कई वजहों से यह सेवाएँ उन तक पहुँच नहीं पाती हैं। उसकी एक वजह बच्चों के माता-पिता या देखभाल करने वालों को कई बार टीकाकरण जैसी सेवाओं के बारे में जानकारी ही नहीं होती है। इसके साथ ही दूर-दराज़ के गाँवों तक यह सेवाएँ पहुँच नहीं पाती है या वहाँ के लोग इन सेवाओं तक पहुँच नहीं पाते हैं।


चित्र साभार - पुरुषोत्तम ठाकुर
इसके अलावा इन बच्चों के माता-पिता उन्हें उनके बड़े भाई-बहनों या घर के बुज़ुर्गों के पास छोड़कर काम पर चले जाते हैं। इसका गहरा असर इन बच्चों के पोषण और शारीरिक व मानसिक विकास पर होता है।
यह शिशु घर समुदाय को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं। इन शिशु घरों को एनजीओ चलाते हैं। इन शिशु घरों में माएँ अपने छोटे बच्चों को छोड़कर अपने काम पर जाती हैं।
ग्रामीण शिशु घर पहल के तहत हम छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा के आदिवासी बहुल इलाकों में नागरिक समाज संगठनों की भागीदारी मे शिशु घर चलाते हैं। अब तक हम 300 से ज़्यादा शिशु घरों की शुरुआत कर चुके हैं। अगले 10 सालों में इन राज्यों में 7,000 से 8,000 शिशु घरों की स्थापना का करने का हमारा मकसद है।
हमारी इस पहल को झारखंड और ओड़िशा में ‘शिशु घर’ और छत्तीसगढ़ में ‘लइका घर’ कहा जाता है। यह शिशु घर समुदाय के साथ मिलकर चलाए जाते हैं। यह शिशु घर 6 महीनों से लेकर 3 साल तक के बच्चों की दिन में सात से आठ घटों तक देखभाल करते हैं। शिश घरों में यह सुविधा हफ़्ते के 6 दिन मुहैया कराई जाती है।
इन शिशु घरों का कामकाज देखने के लिए शिशु घर कार्यकर्ता होते हैं। वे बच्चों को दिन में एक बार गरमा-गरम खाना और दो बार स्नैक्स देते हैं। वे तय समय पर बच्चों की ऊँचाई/लंबाई और वज़न नापते रहते हैं। इसके आधार पर वे कुपोषित बच्चों को मेडिकल सपोर्ट के लिए न्यूट्रिशन रिसोर्स सेंटर भेजते हैं।
शहरी
शहरी समुदायों में कई तरह की स्वास्थ्य सेवाओं को पहुँचाना भी हमारी प्राथमिकता का हिस्सा है। 2022 में हमने बेंगलूरु के तीन झोपड़पट्टी क्लस्टरों में काम करना शुरू किया और हम तकरीबन 10,000 परिवारों तक पहुँचे।


हर एक क्लस्टर में हम ख़ुद स्वास्थ्य का काम कर रहे हैं। इसके लिए हमने हेल्थ सेंटर शुरु किए हैं। इन हेल्थ सेंटर में बीमारियों का पता लगाकर दवाइयाँ सुझाई जाती हैं। इसके अलावा यह हम इस एरिया के लोगों को इलाज के लिए नज़दीकी हेल्थ सेंटर या सरकारी अस्पताल में मौजूद सेवाओं का लाभ लेने के लिए मदद भी करते हैं।
ग्रांट्स / अनुसंधान / शिक्षा
भारत में कोविड-19 प्रकोप से पैदा हुए गंभीर स्वास्थ्य और मानवीय संकट के दौरान, यह सामने आया कि भारत में स्वास्थ्य के क्षेत्र में ज्ञान, कौशल और विशेषज्ञता की बहुत ज़रुरत है। इस ज़रूरत ने भोपाल में हमारे विश्वविद्यालय में पब्लिक हेल्थ (एमपीएच) में स्नातकोत्तर प्रोग्रैम शुरू करने के हमारे इरादे को मज़बूती दी। जन स्वास्थ्य के लिए मास्टर्स इन पब्लिक हेल्थ का कार्यक्रम शुरू करने के पीछे हमारा संकल्प इरादा सार्वजनिक स्वास्थ्य सिस्टम को मज़बूत करना है।
हम देश की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच और उपलब्धता पर असर डालने वाले मुद्दों और चुनौतियों पर भी ध्यान केंद्रित करते हैं। यह हम ज़मीनी स्तर के शोध और अध्ययन के ज़रिए करते हैं।


ग्रांट के ज़रिए हम भारत के दूर-दराज़ के इलाकों में काम करने वाले स्वास्थ्य संगठनों के साथ साझेदारी करते हैं और इस तरह उनके काम में मदद करते हैं।
अगर आप स्वास्थ्य के क्षेत्र में ग्रांट के लिए आवेदन करना चाहते हैं, तो यहाँ क्लिक करें.